घिंघारू झाड़ी ही नहीं अपितु अमृत यानि औषधि भी है।


उत्तराखण्ड (Bureau Chief-TWV, News Desk) क्या आप भी जानते है, घिंघारू की पहाड़ी हर्बल चाय के बारे में घिंघारू झाड़ी ही नहीं अपितु अमृत यानि औषधि भी है। उत्तराखण्ड की पहाडीयों में घिंघारू के छोटे छोटे फल यानि स्मोलेस्ट पहाडी़ सेब हैं। वही जिसमें तभी तो कहा गया है ’मेरी घिंघारू की दांडी़ खैजा’ - छोया मंगरू को पाड़ी पीजा । तो आईये जानें पहाड़ी औषधी व फल घिंघारु के बारे में कितना महत्वपूर्ण है। आपको बता दे कि उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र में इस बात से साबित होता है कि यहाँ की हर चीज मानव हित में बनी हुई हैं। वही जिसमें अगर हम बात करें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में एक से एक शानदार पहाड़ हैं। जिसमें कई पहाड़ों की श्रृंखलाएं हैं और सुंदर एवं मनोरम घाटियां हैं। जबकि पहाड़ को जीवंत बनाये रखने हेतु सदियों से ही पेड़ और पानी दोनों आवश्यक बने हुए हैं।


बता दे कि वृक्ष से पानी, पानी से अन्न तथा अन्न से जीवन मिलता है। और यह कहावत से सभी भली भांति विज्ञ हैं। कि ये भी सभी जानते हैं कि जीवन को परिभाषित करने के लिए जीव और वन दोनों का होना अति जरूरी है। वही जिसमें इस पर डॉ० विजय कान्त पुरोहित प्रेक, हे.न.ब.ग.वि.वि. ने जानकारी देते हुए कहा कि जहां वन होता है वहीं जीव होते हैं। इन्हीं वनों पर पूर्व से ही हमारा ;खासकर पहाड़ियों का जीवन आश्रित रहा है। इसी की बानगी है कि बनों के बिना पहाड़ अधूरा और इनमें पाई जाने वाली बहुमूल्य खाद्य वनस्पतियों के बिना मानव जीवन कमजोर माना गया है। वही जिसमें यहाँ पाये जाने वाले वन्य खाद्य वनस्पतियों/पादपों में से बहुत सारी ऐसी हैं जिनका सेवन हम विभिन्न रूपों में सीधे फल कर लेते हैं। उन्हीं में से एक है पहाड़ी घिंघारु। वही जिसमें डॉ० पुरोहित ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों में सिरमौर से भूटान ;सिक्किम को छोडकर तक 750 से 2400 मी० तक की ऊँचाई पर पाए जाने वाले आकार में छोटे छोटे गोल मटोल तथा रंग में हरे तथा पकने के बाद चिट्ट लाल.-लाल घिंघारू को भला कौन नहीं जानता होगा। वो पहाड़ी ही क्या जिसने घिंघारू की दांड़ी यानि फल का स्वाद न चक्खा हो। वही इस घिंघारू की दांड़ी यानि फल स्वाद में चाहे अब्बल नाहो मगर स्वस्थ शरीर के लिए एक अमूल्य धरोहर है यानि प्रकृति का अदभुत गिप्ट है।


वही जिसमें डॉ० पुरोहित के अनुसार घिंघारू को लगभग सभी पर्वतीय क्षेत्रों में श्घिंघारूश् के ही नाम से ही जाना जाता है। वही जिसमें रोजे सी परिवार के इस उपयोगी पादप को वनस्पतिजगत में पाईराकंथा कृनुलेटा (Pyrancatha_ crenulata) के नाम से जाना जाता है। घिंघारू को हिमालयन.फायर.थोर्न’, व्हाईट.थोर्न तथा हिमालयन रेड बेरी के नाम से भी जाना जाता है।


जबकि ये पहाड़ी क्षेत्रों में घिंघारू प्राकृतिक रूप से बंजर एवं पथरीली भूमि के साथ ही कृषि खेतों के किनारों पर बहुतायत मात्रा में उगने वाला बहुवर्षीय काष्ठीय सदाबहार तथा विषम परिस्थितियों में भी खूब फूलने तथा फलने वाला एक कंटीला जंगली पौधा या झाड़ी है। वही जिसमें इस घिंघारू के छोटे.छोटे फलों को ग्रामवासी या बच्चे सेब की संज्ञा भी देते हैं। क्यूंकि इसके छोटे.छोटे बड़े ही स्वादिष्ट फल सेब के फलों से मिलते जुलते दिखाई देते हैं। वही जिसमें डॉ० पुरोहित के अनुसार ये पहाड़ी घिंघारू के फल लगने के बाद घिंघारू की झाड़ियां बहुत ही सुन्दर दिखने लगती हैं। कई लोग तो इसकी खूबसूरती के कारण इसको ओरनामेंटल झाड़ी के रूप में भी रोपण करते हैं।


तो आइये जानकारों के अनुरूप जानते हैं घिंघारू के पौष्टिक एवं औषधीय गुणों के बारे में। पहाड़ की पारम्परिक रूप से घिंघारू का फल पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर माना गया है। इसका सेवन कई बिमारियों की रोकथाम में उपयोगी माना गया है। .घिंघारू की पत्तियों तथा छाल से तैयार लेप का उपयोग कफ एवं सर्दी के उपचार में लाभकारी माना गया है। इस घिंघारू की छाल का उपयोग मूत्र सम्बन्धी बिमारियों के उपचार में फायदेमंद माना गया है। औषधी गुणों में घिंघारू के फल का सेवन हृदय सम्बन्धी विकार, हाईपरटेंशन, मधुमेय तथा रक्त चाप नियंत्रित करने हेतु उपयोगी माना गया है।


.साथ ही इस घिंघारू की पत्तियों में एंटी.आक्सीडेंट और एंटी.इंफ्लेमेंट्री गुण पाए जाते हैं। इस कारण इसको हर्बल चाय के रूप में इस्तेमाल करने में भी उपयोगी माना गया है। जबकि .घिंघारू में एंटी.आक्सीडेंट के साथ ही न्युट्रास्यूटिकल, खनिज लवण, विटामिन, प्री.बायोटिक्स, इत्यादि गुणों भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इस.घिंघारू के फल में विद्यमान फ्लेबोनोईड्स तथा ग्लैकोसाइड्स की वजह से यह एंटी इंफ्लेमेंट्री गुण लिए हुए होता है। वही जिसमें आपको बता दे कि जानकारों द्वारा घिंघारू के औषधीय गुणों के कारण इसको कार्डियो टोनिक का नाम दिया गया है। जोकि रक्त चाप को सुचारू रखने के साथ ही रक्त से हानिकारक कोलेस्ट्रोल की मात्रा को भी कम करने का काम करता है।


वही जिसमें आपको बतादे कि उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी कौंसिल के महानिदेशक डॉ० राजेन्द्र डोभाल द्वारा घिंघारू के ऊपर लिखे गये लेख में घिंघारू के सेवन को हृदय के लिए अमृत माना गया है। घिंघारू की पत्तियों का सेवन रक्त प्रभाव के साथ ही स्मरण शक्ति को बढ़ाने में भी कारगार माना गया है। वही इस घिंघारू के फलों को प्रोटीन, वसा, फाइबरए कार्बोहाइड्रेट, विटामिनों, कैल्सियम तथा पोटेशियम का अच्छा स्रोत माना गया है। वही जिसमें डॉ० राजेन्द्र डोभाल द्वारा लिखे गये लेख के अनुरूप वैज्ञानिक शोधों में घिंघारू को हाईपरटेंशन तथा हृदय सम्बन्धी विकारों के निवारण के लिए रामबाण औषधि माना गया है। वही इस घिंघारू के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त में देने से फायदा मिलना माना गया है।


घिंघारू के फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करने के साथ ही शरीर की रोग प्रितिरोधक छमता बढ़ाने में सहयोगी माना गया है। ग्रामीणों द्वारा घिंघारू की लकड़ी का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है जिससे दांत दर्द में भी लाभ मिलना बतलाया गया है। घिंघारू के फलों से निकाले गए जूस में रक्त.वर्धक प्रभाव पाया जाना बताया गया है। जिसका सेवन जो खास कर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में काफी लाभदायकध् आवश्यक माना गया है। वही जिसमें जानकर मानते हैं कि इस कुल की अधिकाँश वनस्पतियों के बीजों एवं पत्तों में अल्प मात्रा में ’हायड्रोजन.सायनायड’ पाया जाता है जिस कारण इनका स्वाद थोड़ा कडुआ होता है।


इसी कारण से इसमें एक विशेष प्रकार की खुशबू पायी जाती है। ’हायड्रोजन.सायनायड’ अल्प मात्रा में पाए जाने के कारण यह हानिरहित होता है। तथा श्वास-.प्रश्वास की क्रिया को उद्दीपित करने के साथ ही पाचन क्रिया को भी ठीक करता है। बता दे कि जानकर मानते हैं कि घिंघारू के बीजों एवं पत्तियों में पाए जानेवाले श्हायड्रोजन सायनायडश् के कैंसररोधी प्रभाव भी देखे गए हैं लेकिन अधिक मात्रा में इनका सेवन श्वासावरोध उत्पन्न कर सकता है। पहाड़ों में खासकर स्कूल के बच्चों तथा ग्वालों गाय-भेंसों के साथी, तथा जंगलों में घास लकड़ी लेने गयी महिलाओं द्वारा घिंघारू के फलों को पकने के बाद बहुत ही चाव से खाया जाता है।


घिंघारू के खाए जाने वाले चिट्ट लाल-लाल फलों में पाए जाने वाले पौष्टिक एवं औषधीय गुणों के कारण इनसे जैम, सौस, जूस तथा स्क्वैस बनाया जाता है। वही जिसमें आपको बता दे कि ये प्रयास सर्वप्रथम जी.बी.पन्त संस्थान, की गढ़वाल क्षेत्रीय इकाई के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये थे। तब से स्थानीय लोगों द्वारा इसके उत्पाद बनाये तथा उपयोग में लाये जा रहे हैं। जिसमें इस फलघिघारू का जूस आप भी आसानी से अन्य पादपों के जूस की तरह ही घर पर निकाल सकते हैं।


घिंघारू की लकडी़ काफी मजबूत होने की वजह से इसकी सीधी शाखों से चलने हेतु लाठी के साथ ही कृषि सम्बन्धित उपकरणों के बिंडे-हत्थे भी बनाये जाते हैं। वही आपको बता दे कि माह मई-जून में फूलने-फलने तथा जून-जुलाई में पकने वाले घिंघारू के बारे में दी गयी जानकारी से यदि सहमत हों तो आप भी स्वस्थ एवं निरोगी काया के लिए अवश्य खाएं पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से परिपूर्ण घिंघारू।