sp singh ब्यूरो चींफ/उत्तराखण्ड, डेस्क। देहरादून 22 फरवरी2020 को प्रदेश में घराट का क्या महत्व है और इससे पनचक्की भी कहते है। तो आईये हम आज आपके लिए लेकर आऐ है। घराट के बारे में कुछ विषेश जानकारी जो अब प्रदेश से लुप्त होती जा रही है। पहाड़ों में घराट एक पनचक्की जिसमें गांव के लोग मोटा अनाज जैसे गेंहू,चावल, बाजरा, मडुंवा, मक्की आदि पीसते है। इस घराट के पीसे अनाज का स्वाद ऐसो होता है जो कोई एक बार इस पनचक्की के पीसे अनाज को खाएं उसके बाद तो उसका दिवाना हो जाता हैं ।
उत्तराखण्ड, पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती है।’यह कहावत एक विकट त्रासदी की ओर संकेत करती है। यों तो ये कल-कल, छल-छल करती नदियां पहाड़ के लोगों के लिए जीवनदायिनी मानी जाती हैं, लेकिन उत्तराखण्ड के जिले के पहाड़वासियों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन गई हैं। कुसूर न पहाड़ का है, न जंगल का, न नदी का और न वहां के भोले-भाले बाशिंदों का।
आपको बता दे कि यह घराट पहाड़ीयों के छोटे-छोटे झरने व नालीयों के बीच झोपड़ी की तरह दिखने वाले जिसे हम उत्तराखण्ड में पनचक्की भी कहते है। तो आईये आपको इसके बारे विस्तार से बताते हुए। घराट उत्तराखण्ड में परम्परागत रूप से प्रयुक्त एक प्रकार का जलचालित यंत्र पनचक्की है जो मोटे अनाज आदि पीसने के काम आता है। आजकल वियुतचालित आटा.चक्कियों के अधिकाधिक प्रयोग से घराट का प्रचलन बहुत कम हो गया है।यह प्रदेश के जिलों में घट-घराट,पनचक्की समाप्ति की कगार पर है।वही सूत्र बताते है की भारत के हिमालय क्षेत्र के गांवों में ही लगभग दो लाख घराट यानी पनचक्कियां मौजूद हैं।
वही आपको बता दें की उत्तराखण्ड के जिलों लगभग अब तक घराटों की स्थिति यह है कि पूरे जिले में केवल 50 घराट बचे हैं घराटों की मरम्मत करने के लिए धनराषि तक नहीं है। घराटों-पनचक्की की यदि जल्द मरम्मत नहीं की गई तो यह जमाने की बात हो जाएंगे। परम्परागत श्घराटश् पर गांव.गांव में आटा पीसने का काम उस समय से यहां चल रहा है जब किसी ने वैकल्पिक ऊर्जा को एक अभियान के रूप में कभी लेने की कल्पना भी न की होगी। पहाड़ के कई गांवों में जहां सड़क.बिजली जैसी सुविधाएं कभी पहुंची भी न थीं। वहां उस दौर में गांव से निकलने वाली जलधाराओं के सहारे आटा, मसाला, दाल पीसने का काम घराट के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है। पनचक्की अब केवल आटा.मसाले ही नहीं पीस रही बल्कि अब अपनी खुद की बिजली भी पैदा कर रही है। नैनीताल जिले में सडि़याताल के आस.पास ऐसे 16 घराट हैं। जिनमें बिजली पैदाकर गांव वाले न सिर्फ अपने घर बल्कि आस.पास के घरों को भी रौशनी दे रहे हैं। भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।
उत्तराखंड में मौजूद तमाम गाड़.गधेरों, नदी-नालों से गूल निकालकर पनचक्कियों को भी लगाया गया है। इससे पनचक्की के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन के अलावा गेहूं पिसाई व धान कुटाई का काम इनसे लिया जाता रहा है। उत्तराखंड में घराट यानी पनचक्की सबसे पुराना सामूहिक सहकारी उद्योग है। चंद शासकों के सन् 1442 में राज करने वाले राजा काशीचंद के किमतोली ताम्रपत्र में घराट का उल्लेख मिल जाता है। कल्याण मल्ल ने भी सन् 1443 में इसका उल्लेख ताम्रपत्र में किया है। अकेले कुमाऊं में ही 12 दर्जन से अधिक ताम्रपत्रों में घराटों का उल्लेख मिलता है।
औपनिवेशिक शासनकाल से पूर्व पनचक्की अथवा गूलों के निर्माण एवं स्थापना में कोई दखल राज्य नहीं रखता था। अंग्रेजों ने अपने शासन में इसके लिए राजाज्ञा का प्रावधान किया। घराटों की स्थापना के लिए डिप्टी कलेक्टरों की अनुमति को अनिवार्य कर दिया गया। सन् 1917 व 1930 में कुमाऊँ वाटर रूल्स के माध्यम से घराटों पर औपनिवेशिक शासन ने नियंत्रण कर लिया। 1922 में सरकार ने घराटों पर सालाना कर भी योजित कर दिया।अब इन परंपराओं की महत्ता समझ इनमें आधुनिक बदलाव लाकर इनके प्रति जागरूकता की आवश्यकता है।