<no title>“इससे देश की समानता और भाईचारे की भावना को बल मिलेगा: शाह


 


न्यूज डेस्क, उत्तराखण्ड ब्यूरोंः नई दिल्ली में 11 दिसबंर बुद्धवार को ऐतिहासिक दिन बन गया। जिसमें नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 बुधवार को राज्यसभा में पारित हो गया। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून का रूप ले लेगा। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 125, जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े, करीब 8 घंटे तक इस पर बहस हुई इससे पहले विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया गया।


सूत्रों के मुताबिक वही जिसमें लोकसभा में बिल का समर्थन करने वाली शिवसेना को लेकर आशंका थी, लेकिन पार्टी ने वोटिंग से वॉकआउट कर सरकार के काम को आसान बना दिया। यह विधेयक लोकसभा में सोमवार को ही पारित हो गया था। लोकसभा में सोमवार को 14 घंटे बहस के बाद नागरिकता संशोधन बिल पास हो चुका है, पक्ष में 311 और विपक्ष में 80 वोट पड़े।


वही जिसमें मोदी ने ट्वीट कर कहा, “इससे देश की समानता और भाईचारे की भावना को बल मिलेगा। यह विधेयक वर्षों तक उत्पीड़न सहने वाले कई लोगों की पीड़ा दूर करेगा। विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाले सभी सांसदों का आभार।”राज्यसभा में बिल पास होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के लिए ऐतिहासिक बताया।
वही जिसमें भारत की राष्ट्रीय के लिए पात्र होने की समय सीमा 31 दिसंबर 2014 होगी। मतलब इस तिथि के पहले या इस तिथि तक भारत में प्रवेश करने वाले नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे।


नागरिकता पिछली तिथि से लागू होगी। इसके साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। वही जिसमें महात्मा गांधी का जिक्र करके उन्होंने अपने तर्क की पुष्टि करते हुए कहा, "26 सितंबर 1947 को गांधी ने कहा था कि पाकिस्तान में निवास करने वाले हिंदू और सिख भयमुक्त होकर भारत आ सकते हैं। उन्हें आश्रय व रोजगार देना भारत का कर्तव्य है।" शाह ने कहा,  नागरिकों को ध्यान में रखते हुए समस्या का समाधान हमारी सरकार की प्राथमिकता है।"


सूत्रों के मुताबिक वही जिसमें उन्होंने कहा, "हमने सिर्फ तीन देशों से आनेवाले लोगों की मदद के लिए इन देशों का नामों का जिक्र किया। अब हमें समस्या को नजरंदाज करने की जरूरत नहीं है। "बहस का जवाब देते हुए शाह ने कहा कि 44 सदस्यों ने सदन में अपनी राय, सुझाव व आपत्तियां पेश कीं।


वही जिसमें हाल ही में कांग्रेस से हाथ मिलाने वाली शिवसेना के सदस्यों ने विधेयक पर वोटिंग में किनारा किया। वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) ने विधेयक का समर्थन किया।
उन्होंने कहा, "मैं तथ्यों को पेश करना चाहता हूं। विधेयक नहीं लाया गया होता। अगर देश का विभाजन नहीं होता तो नागरिकता अधिनियम में संशोधन की जरूरत नहीं होती। यही नहीं, अगर पिछली कोई सरकार ने काम किया होता तो हम विधेयक नहीं लाते। गृहमंत्री ने कहा, "इतने साल से इन लोगों की आवाज नहीं सुनी गई और उनके आंसू नहीं देखे गए।"


वही 11 दिसबंर बुद्धवार को जब नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद अब देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध तरीके से निवास करने वाले अप्रवासियों के लिए अपने निवास का कोई प्रमाण पत्र नहीं होने के बावजूद नागरिकता हासिल करना सुगम हो जाएगा। सभी सदस्यों से विधेयक का समर्थन करने की अपील करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष से कहा कि वे समाज को बांटने के लिए राजनीति न करें। उन्होंने कहा कि विपक्ष अल्पसंख्यकों को मूर्ख बनाना बंद करे। शाह ने सवालिया लहजे में कहा, "क्या कांग्रेस जो कर रही है व धर्मनिरपेक्ष है और हम जो कर रहे हैं वह संविधान के खिलाफ है।


वही जिसमें सरकार का कहना है कि पड़ोसी देशों में बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर उत्पीड़न झेलना पड़ा है और इस डर के कारण कई अल्पसंख्यकों ने भारत में शरण लेकर रखी है। इन्हें नागरिकता देकर जरूरी सुविधाएं दी जानी चाहिए। गृहमंत्री ने कहा, "मैंने हमेशा कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को किसी बात से डरने की जरूरत नहीं है। नागरिकता संशोधन विधेयक से कोई मुस्लिम भाई-बहन प्रभावित नहीं होगा। विपक्ष विभाजन क्यों पैदा कर रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों का विरोध है कि यदि नागरिकता बिल संसद में पास होता है बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता देने से यहां के मूल निवासियों के अधिकार खत्म होंगे। इससे राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत पर संकट आ जाएगा।


वही जिसमें कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा, 'आपने (सरकार) कहा कि यह ऐतिहासिक होगा, लेकिन इतिहास इसे कैसे देखेगा? सरकार जल्दबाजी में है। हम इसका विरोध करते हैं। इसका कारण राजनीतिक नहीं, संवैधानिक और नैतिक है। बिल लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है।'
शाह ने कहा, "कब तक हम देश की समस्या को टालते रहेंगे। लियाकत-नेहरू समझौता (दिल्ली समझौता) आठ अप्रैल 1950 को हुआ था। दोनों देशों ने अल्पसंख्यकों के साथ सम्मान का व्यवहार करने और उन्हें अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता प्रदान करने पर सहमति जताई थी। यह वादा था। लेकिन आखिरकार वादा तोड़ दिया गया।"


उन्होंने सदन को भरोसा दिलाया कि विधेयक से अवैध अप्रवासी सच बयां कर पाएंगे कि वे अप्रवासी हैं और नागरिकता चाहते हैं। उन्होंने कहा, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के संविधान का जिक्र किया जिनमें बताया गया है कि ये इस्लामिक देश हैं।


भूटान, म्यांमार और श्रीलंका के अल्पसंख्यकों का बाहर रखने के मसले पर शाह ने कहा कि सरकार ने श्रीलंका और यूगांडा से आए लोगों को नागरिकता प्रदान की और तदनुसार संशोधन किए गए।