उत्तराखण्डः 29 अक्टु0 को आयुर्वेद तन्त्र व दैनिक उपयोग के लिए विशेष महत्व रखता है। अपामार्ग एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है। अपामार्ग का पौधा एक से तीन फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है। कुछ व्याधियों में इस पौधे का उपयोग बहुत लाभप्रद सिद्ध होता है। अलग-अलग हेतु से इसकी जड़, बीज, पत्ते और पूरा पौधा (पंचाग) ही प्रयोग में लिया जाता है। बारिश में सहज उगने वाला लाल व सफेद रंग में मिलने वाला पौधा जिसे ओंगा, लटजीरा, चिरचिटा कहते हैं।
यदि आपके व्यापार में लगातार हानि हो रही है तो आप रवि पुष्य नक्षत्र में श्वेत अपामार्ग को अपने व्यवसायिक स्थल पर रख दें। ऐसा करने से किसी भी प्रकार का किया गया तन्त्र निष्फल हो जाता है जिससे व्यापार में वद्धि होने लगती है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को प्रातः काल अपामार्ग की जड़ को लाकर उसका पंचोपचार से पूजन कर भुजा में धारण करने से बड़ी से बड़ी विपत्ति भी दूर हो जाती है।
यह वर्षा ऋतु में पैदा होता है। इसमें शीतकाल में फल व फूल लगते हैं और ग्रीष्मकाल में फल पककर गिर जाते हैं। इसके पत्ते अण्डकार, एक से पाँच इंच तक लंबे और रोम वाले होते हैं। यह सफेद और लाल दो प्रकार का होता है। सफेद अपामार्ग के डण्ठल व पत्ते हरे व भूरे सफेद रंग के होते हैं। इस पर जौ के समान लंबे बीज लगते हैं। लाल अपामार्ग के डण्ठल लाल रंग के होते हैं और पत्तों पर भी लाल रंग के छींटे होते हैं। इसकी पुष्पमंजरी 10-12 इंच लंबी होती है, जिसमें विशेषतः पोटाश पाया जाता है।
अपामार्ग तंत्र और अयुर्वेद की बेहद अहम वनस्पति है। अपामार्ग दस्तावर, तीक्ष्ण, अग्नि प्रदीप्त करने वाला, कड़वा, चरपरा, पाचक, रुचिकारक और वमन, कफ, मेद, वात, हृदय रोग, अफारा, बवासीर, खुजली, शूल, उदर रोग तथा अपची को नष्ट करने वाला है। यह उष्णवीर्य होता है।
अपामार्ग का काढ़ा उत्तम मूत्रल होता है। इसके पत्तों का रस उदर शूल और आँतों के विकार नष्ट करने में उपयोगी होता है। इसके ताजे पत्तों को काली मिर्च, लहसुन और गुड़ के साथ पीसकर गोलियां बनाकर सेवन करने से काला बुखार ठीक होता है।